अंतर अनुशासनिक
अध्ययन का तात्पर्य वैसे अध्ययन से है जिसमें विद्या के एक से अधिक शाखाओं का
पारस्परिक प्रभाव और सम्बद्ध विद्या शाखा के नियमों एवं सिद्धान्त के आधार पर इस
प्रभाव की पहचान की जाती है। इसे समझने के
लिए साहित्य और प्रदर्शनकारी कला ज्यादा उपयुक्त होते हैं जिसमें सभी विषयों और
कलाओं का समाहार हो जाता है। इसलिए स्वाभाविक है की इन विषयों का अध्ययन इनके मूल
सिद्धांतों के अतिरिक्त अन्य विषयों के कोणों से करना अपेक्षित हो जाता है।
अंतर अनुशासनिक
अध्ययन अंग्रेजी भाषा के ‘इंटरडिसिप्लिनरी स्टडि’ का हिन्दी पर्याय है। विद्वानों ने ‘डिसिप्लिन’ शब्द का सटीक हिन्दी पर्याय ‘विद्या’ शब्द होने के चलते ‘इंटरडिसिप्लिनरी स्टडि’ का हिन्दी पर्याय ‘अंतरविद्यावर्ती अध्ययन’ माना है। डॉ॰ फादर कामिल बुल्के ने
भी अपने अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश में ‘डिसिप्लिन’ के लिए ‘विद्या’ शब्द ही दिया
है।[1] लेकिन अंतर अनुशासनिक अध्ययन
ही ‘इंटरडिसिप्लिनरी स्टडि’ का हिन्दी
पर्याय रूप में चल पड़ा।
अंतर अनुशासनिक
अध्ययन के संदर्भ में ‘क्लीन और नेवेल’ नामक विद्वान का कहना है, “अंतर अनुशासनिक अध्ययन प्रश्नो
के उत्तर देने की प्रक्रिया है, समस्या समाधान की एक प्रणाली
या बहुत विस्तृत या जटिल विषय को संबोधित करने की शैली है जो एक अनुशासन के द्वारा
पूर्ण रूप में संबोधित नहीं हो पाते तथा साथ ही यह अनुशासनों से प्राप्त
परिप्रेक्ष्यों और अंतर्दृष्टियों को समन्वित कर व्यापक परिप्रेक्ष्य की रचना करता
है ”
विलियम नेवेल का कहना
है, “अंतर अनुशासनिक अध्ययन दो भागों की वैसी प्रक्रिया
है जिसमें पहला, बहुत क्षीण रूप में दूसरे अनुशासनों से
अंतर्दृष्टि प्राप्त किया जाता है और दूसरा किसी जटिल प्रघटना की वृहद समझ के लिए
उपस्थित अनुशासनों की अंतर्दृष्टियों का समन्वय किया जाता है”।
‘वेरोनिका
बोइक्स मेनसीला’ जर्नल में कहा गया है,
“अंतर अनुशासनिक अध्ययन ज्ञान को समन्वित करने और सोचने की वैसी पद्धति है जिन्हें
दो या दो से अधिक अनुशासनों से प्राप्त किए गए हों, जिनका
उद्येश्य होता है संज्ञानात्मक प्रगति को प्राप्त करना। उदाहरण के लिए किसी घटना
का वर्णन, समस्या का समाधान, किसी
वस्तु का निर्माण या नए प्रश्नो को उठाना जिसे किसी एक विषय के माध्यम से नहीं
प्राप्त किया जा सकता है ”।
‘द नेशनल
एकैडमी ऑफ साइन्स, इंजीन्यरिंग एण्ड मेडिसीन’ से प्रकाशित रिसर्च जर्नल में कहा गया है, “ अंतर
अनुशासनिक शोध, किसी शोध दल या व्यक्तिगत स्तर पर किए
जानेवाले शोध की वह पद्धति है जिसमें दो या दो से अधिक अनुशासनों या किसी विशेष
ज्ञान के भागों या अंशों के आधारभूत समझ को विकसित करने के लिए या समस्याओं के
समाधान के लिए जिनका समाधान किसी एक अनुशासन के शोध अभ्यास से परे है, से संबन्धित सूचनाओं, आकड़ों,
तकनीकों,
उपकरणों, परिप्रेक्ष्यों,
अवधारणाओं को समन्वित किया जाता है ”।
टी॰ क्लेविन लिबरल
आर्ट इन्स्टीट्यूशन द्वारा प्रकाशित जर्नल के अनुसार, अंतर अनुशासनिक अध्ययन पाठ्यक्रम को तैयार करने और प्रशिक्षण की एक ऐसी
विधि है जिसके तहत फैकल्टी व्यक्तिगत या दल के रूप में विद्यार्थियों की क्षमता को
विकसित करने, मुद्दों की समझ व्यापक करने, समस्याओं के समाधान हेतु नए उपागमों के निर्माण तथा समस्या समाधान की
दिशा में जो एक अनुशासन या प्रशिक्षण क्षेत्र से बाहर हो, के
लिए दो या अधिक अनुशासनों की सूचनाओं, आंकड़ों, तकनीकों, उपकरणों, सिद्धांतों
की पहचान व मूल्यांकन करती है।
उपरोक्त परिभाषाओं को
समन्वित करके अंतर अनुशासनिक अध्ययन की एक समग्र परिभाषा बन सकती है, “अंतर अनुशासनिक अध्ययन वैसे प्रश्नों के उत्तर देने की प्रक्रिया, जटिल विषयों को समझने की पद्धति, समस्या समाधान की पद्धति
है जिसका समाधान एक से अधिक अनुशासन की समझ से संभव होता है तथा एक से अधिक
अनुशासनों पर निर्भर रहकर भी उनके अंतर्दृष्टियों का समन्वय इस लक्ष्य को ध्यान
में रखकर किया जाए कि वृहत समझ की प्ररचना हो सके ”।
सामान्य ढंग से
अनुशासन और अंतर अनुशासन अध्ययन में विभेद करने पर हम पाते हैं कि एक अनुशासन में
किसी निश्चित विषय के ज्ञान का भाग प्राप्त होता है जबकि अंतर अनुशासनिक अध्ययन
में विभिन्न विषयों के समन्वय से ज्ञान की निर्मिति होती है।
किसी खास अनुशसन के अध्ययन
में ज्ञान प्राप्त करने की निश्चित विधि होती है जो उस अनुशासन के क्षेत्र में ही
ज्ञान अवधारणाएँ और सिद्धान्त सृजन की ओर अग्रसर होती है जबकि अंतर अनुशासनिक
अध्ययन में ज्ञान प्राप्त करने की कई अनुशासनिक विधियाँ होती है जिससे नए बोधात्मक, संज्ञानात्मक प्रगति और विस्तृत समझ का विकास होता है।
किसी एक अनुशासन में
मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रम द्वारा उस अनुशासन के विद्वानो का समुदाय ज्ञान के
क्षेत्र को नियंत्रित करने की इच्छा रखते हैं जबकि अंतर अनुशासनिक अध्ययन में
ज्ञान के नए आयामों के विकास के चलते पाठ्यक्रम में परिवर्तन की संभावना बनी रहती
है और खास विद्वत समुदाय का वर्चस्व भी नही होता है।
किसी एक अनुशासन के
अध्ययन की अपेक्षा अंतर अनुशासनिक अध्ययन द्वारा ज्ञान के क्षेत्र में रूढ़ियों और
पूर्वाग्रहों के निवारण की संभावना बहुत अधिक होती है।
अंतर अनुशासनिक अध्ययन
आधुनिक युग की आवश्यकता है इसका कारण यह है कि ज्ञान अखंड भले ही हो, लेकिन उसकी प्राप्ति और प्रतीति के मार्ग अलग-अलग होते हैं। ये मार्ग ही
विभिन्न विद्याओं के रूप में जाने जाते हैं। प्राचीन काल में ज्ञान को ब्रह्म के
समान समग्र एवं अखंड माना जाता था और उसका स्वरूप संश्लिष्ट था। वेद इसका प्रमाण
हैं। ज्ञान का विभाजन दर्शन, विज्ञान आदि संकायों में नहीं
किया जाता था। कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं का ज्ञान एक साथ ही मिलता है। गैलीलियो
से पहले दर्शन और विज्ञान को एक ही समझा जाता था। तब दर्शन को मीमांसा दर्शन और
विज्ञान को व्यावहारिक दर्शनों के नाम से जाना जाता था। प्लेटो के ‘रिपब्लिक’ में भी ज्ञान अखंड रूप में ही विद्यमान है।
इसके पश्चात विभाजन का युग आया और ज्ञान का रूप विश्लिष्ट यानि अलग-अलग होने लगा।
बाद के दिनों में ज्ञान की अनेकों शाखाएँ विकसित हो गई। लेकिन ज्ञान की ये शाखाएँ
स्वतंत्र होते हुए भी दूसरे से पूर्णतः निरपेक्ष नही हैं क्योकि विद्या की
प्रत्येक शाखा जीवन को समझने का ही मार्ग प्रदान करती हैं इसलिए उनका प्रभाव एक
दूसरे पर पड़ता ही है। उत्तर आधुनिक युग में विद्वानों ने महसूस किया की ज्ञान का
शुद्ध स्वरूप तभी स्थिर हो सकता है जब उसकी एक से अधिक शाखाओं के बीच के अंतर
सम्बन्धों का अध्ययन किया जाये। इसलिए वर्तमान समय में अंतर आधुनिक अध्ययन का जो
स्वरूप विकसित हुआ है वह तीन-चार दशक ही पुराना है लेकिन इसकी लोकप्रियता और
उपयोगिता इसके नए-नए आयाम विकसित कराते जा रहे हैं। शुद्ध विज्ञान का आधार पूर्णतः
बौद्धिक होता है इसलिए उसमें कम लेकिन मानविकी विषयों में अंतर अनुशासनिक अध्ययन
की अधिक आवश्यकता होती है। अनुपर्युक्त विज्ञान की शाखाओं में भी अंतर अनुशासनिक
अध्ययन की अधिक उपयोगिता होती है।
अंतर आधुनिक अध्ययन
के लाभ की स्पष्टता के लिए हम विज्ञान के क्षेत्र से एक उदाहरण चुनते हैं – रेडियो
कार्बन का आविष्कार और पुरातत्व अध्ययन ज्ञान की बिलकुल अलग-अलग शाखाओं से
संबन्धित हैं लेकिन अंतर अनुशासनिक अध्ययन के आधार पर ही केमिस्ट ‘विलार्ड लिब्बी’ ने ‘रेडियो
कार्बन डेटिंग’ पद्धति की खोज की जिसकी सहायता से आज किसी भी
पुरातत्व अवशेष की उम्र का अनुमान लगाया जा सकता है। इस कार्य के लिए ‘विलार्ड लिब्बी’ को 1960 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अंतर आधुनिक अध्ययन
के संदर्भ में विद्वान ‘यंग ब्लड’ का कहना है कि “अंतर अनुशासनिक तकनीक की नींव भविष्य में खोज और शोध का
नेतृत्व करेंगे”। वर्तमान समय में अंतर अनुशासनिक अध्ययन की
उपलब्धियों को देखकर यह बात सत्य ही प्रतीत होती है। प्रदर्शनकारी कलाओं के संदर्भ
में विचार करें तो यह स्पष्ट होता है कि अंतर अनुशासनिक अध्ययन रचना की परिपूर्णता
और ओजस्वी होने की संभावना को कई गुना बढ़ा देता है। ऐसा नहीं है कि इस अध्ययन
पद्धति की खामियां नहीं है। सबसे बड़ी खामी है, अंतर अनुशासनिक
अध्ययन को बढ़ावा मिलने से किसी भी अनुशासन की मूल सिद्धांतों का विकास बाधित होता
है। लेकिन हानि की अपेक्षा लाभ अधिक होने से यह कहना कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि
ज्ञानार्जन के क्षेत्र में भविष्य अंतर अनुशासनिक अध्ययन का ही है।
संदर्भ :
1. वर्मा, (डॉ॰) हरिश्चंद्र, 2006 ई॰,
शोध प्रविधि, हरियाणा साहित्य अकादमी,
पंचकूला – 134113
2. सिंघल, बैजनाथ, 2008 ई॰, शोध, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली – 110002
3. गाणेशन, एस॰एन॰, 2009 ई॰, अनुसंधान प्रविधि सिद्धान्त और प्रक्रिया, लोक
भारती प्रकाशन, इलाहाबाद - 1