बिना ताम-झाम के भी
नाटक हो सकता है, यह बात जितनी सत्य
है उतनी ही यह बात भी सत्य है कि दृश्य विन्यास के कारण नाट्य प्रस्तुति बहुत ही
प्रभावशाली हो जाती है। नाट्य प्रस्तुति के दौरान दृश्य विन्यास के द्वारा होने
वाले कार्य हैं :
· नाट्य
क्रिया का वातावरण का निर्माण· नाट्य क्रिया का स्थल निर्धारण
· नाट्य क्रिया में अभिवृद्धि करना
· नाट्य क्रिया का सौन्दर्य बढ़ाना
उपरोक्त तीनों
कार्यों के लिए यह आवश्यक है कि दृश्य विन्यास नाट्यानुकूल,
अभिव्यक्तिपूर्ण, आकर्षक,
स्पष्ट, सरल,
उपयोगी और व्यावहारिक हो। दृश्य विन्यास की इन सब विशेषताओं को प्राप्त करने के
लिए कोई निश्चित और निर्धारित नियम नहीं है जो दृश्य विन्यासकर्ता के लिए आवश्यक
माना जाए। किसी भी दृश्य विन्यासकर्ता की कार्य कुशलता,
उसका अनुभव और उसकी रचनात्मकता पर निर्भर करता है। इसलिए वह अपने कार्य करने का
तरीका स्वयं निर्धारित करता है। फिर भी दृश्य विन्यास की प्रक्रिया के दौरान संभावित
या अवांछित समस्याओं का हल सुगमता से प्राप्त करने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना
बहुत ही लाभदायक होता है। दृश्य विन्यास की प्रक्रिया के दौरान जिन बातों पर ध्यान
दिया जाना चाहिए उनका बिंदुवार वर्णन निम्नलिखित है।
1॰
नाट्यालेख का विश्लेषण
दृश्य विन्यासकर्ता किसी
भी नाट्यालेख का सरसरी तौर पर अध्ययन करके उसकी प्रस्तुति के लिए आदर्श दृश्य विन्यास
कर सकने में सक्षम होगा यह संभव नहीं है। आदर्श विन्यास के लिए विन्यासकर्ता को
चाहिए की निर्देशक से विचार-विमर्श के पूर्व नाट्यालेख का अध्ययन भलीभाँति समझते
हुए करे। इससे वह प्रस्तुति के संदर्भ में निर्देशक की जरूरत को आसानी से समझ
सकेगा। विन्यास लिए विन्यासकर्ता को कई बार नाट्यालेख का अध्ययन करना पड़ सकता है।
नाट्यालेख का पहला अध्ययन एक ही बैठक में करना चाहिए। इससे विन्यासकर्ता नाटक का
केंद्रीय भाव, देशकाल,
स्थान क्या है और किस प्रकार के पात्र नाट्य क्रिया को सम्पन्न करेंगे, इसे समझने
में सक्षम होगा। पहला अध्ययन दृश्य विन्यास की कल्पना का आधार प्रदान करता है।
नाट्यालेख का दूसरा अध्ययन नाटक के विभिन्न पक्ष : भौतिक,
शिल्पगत, व्याख्यात्मक और व्यवहारिक,
पर विचार करते हुए करना चाहिए। एक अच्छा निर्देशक भी इन पक्षों पर विचार करते हुए
नाट्यालेख का अध्ययन करता है। अगर विन्यासकर्ता नाटक के विभिन्न पक्षों पर विचार
करते हुए अध्ययन नहीं करेगा तो वह निर्देशक के मंतव्य को पूरी तरह से समझ नहीं
सकेगा। अगर विन्यासकर्ता को निर्देशक से पूरी स्वतंत्रता मिल भी जाए फिर भी आदर्श
दृश्य विन्यास के लिए नाट्यालेख के इन पक्षों का विश्लेषण करना अकनिवार्य समझा
जाता है।
कई बार नए
विन्यासकर्ता या अतिआत्मविश्वासी विन्यासकर्ता नाट्यालेख प्राप्त होते ही विन्यास
के प्रति स्वयं की अवधारणा विकसित करने के बजाय उस आलेख की पूर्व मंच प्रस्तुतियों
में हुए मंच सज्जा के आधार पर विन्यास की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। यह
दृष्टिकोण बहुत ही घातक होता है। इससे विन्यासकर्ता की मौलिक प्रतिभा बाधित होकर
मृतप्राय होने लगती है। विन्यास की स्वतंत्र अवधारणा का विकास की आदत उसकी प्रतिभा
में निखार लाकर उसे कुशल विन्यासकर्ता बनने की ओर अग्रसर करती है। विन्यास की
स्वतंत्र अवधारणा के लिए नाट्यालेख का गहन अध्ययन और विश्लेषण आवश्यक है। यह
विन्यासकर्ता को व्यक्तिगत लाभ भी पंहुचता है।
मंच की स्थिति के कारण
कई बार विन्यासकर्ता के लिए नाटककार द्वारा विन्यास के लिए दिये गए संकेतों का
अक्षरशः पालन करना संभव नहीं होता है। इसलिए विन्यासकर्ता को अपने हिसाब से
विन्यास करना पड़ता है या फिर नाटककार द्वारा सुझाए गए विन्यास में बदलाव लाना पड़ता
है। इस स्थिति में नाट्य प्रस्तुति के लिए जरूरी दृश्य विन्यास तभी संभव होता है
जब विन्यासकर्ता नाट्यालेख का भलीभाँति अध्ययन किया हो।
उपरोक्त तथ्य को
देखते हुए हम यह कह सकते हैं की आदर्श विन्यास के लिए विन्यासकर्ता द्वारा
नाट्यालेख का अध्ययन-विश्लेषण आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए।
2॰
प्रस्तुति सदस्यों के साथ विचार-विमर्श
किसी भी नई नाट्य
प्रस्तुति की तैयारी के लिए यह आवश्यक होता है कि प्रस्तुति से जुड़े सदस्यों के
बीच कम-से-कम एक बार विस्तार से विचार-विमर्श हो। विचार-विमर्श के आभाव में यह
संभावना बनी रहती है कि दृश्य विन्यासकर्ता का दृष्टिकोण निर्देशक या अन्य पक्षों
के प्रभारी से नहीं मिले। ऐसी स्थिति में प्रस्तुति की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव
पड़ता है। प्रस्तुति की सफलता के लिए इससे जुड़े सदस्यों के साथ विचार-विमर्श आवश्यक
होता है। विचार-विमर्श के दौरान ही दृश्य विन्यासकर्ता को विन्यास के लिए आवश्यक
जानकारी, जैसे- विन्यास की शैली,
प्रदर्शन का समय, दृश्य सज्जा के लिए
निर्धारित बजट, प्रेक्षागृह और मंच क्षेत्र,
उपलब्ध उपकरण आदि पर चर्चा कर लेनी चाहिए जिससे व्यवहारिक कार्य शुरू करने में
अनावश्यक देरी न हो और कार्य के बीच में कोई परेशानी आए तो तुरंत उसका निराकरण हो
सके। दृश्य विन्यास के प्रति अपनी सोच और मनोभावों को विन्यासकर्ता विकल्प के तौर
पर विचार-विमर्श के दौरान ही निर्देशक को बताता है जो उसके लिए कार्य स्वतंत्रता
प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
3॰
नाट्य प्रस्तुति की तकनीकी आवश्यकताएँ
जब प्रस्तुति के लिए
कम दृश्य सज्जा की जरूरत हो तो ज्यादा परेशानी नहीं होती है लेकिन अगर जब बहुत
दृश्य सज्जा और उसके परिवर्तन की जरूरत होती है तो परेशानी शुरू हो जाती है। इन
परेशानियों से बचने के लिए कई प्रकार के मंचों का निर्माण हुआ है। लेखक भी इस बात का
ध्यान रखते हैं कि नाटक ऐसे न लिखे जाएँ जिसकी दृश्य सज्जा जटिल हो और निर्देशक भी
ऐसी प्रस्तुति से बचते हैं। लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं है। न हर जगह सुविधाजनक
मंच मिल सकता है और न सिर्फ दृश्य विन्यास की जटिलता के लिए अच्छे विषय पर आधारित
नाटक की उपेक्षा उचित है। पर यह भी सत्य है कि अधिक दृश्य सजा के कारण दृश्य
परिवर्तन में अनावश्यक विलंब या व्यावधान होता है तथा नाट्य क्रिया कि गति और
निरंतरता भंग होती है। इस स्थिति में विन्यासकर्ता अतिरिक्त तकनीक का प्रयोग करके
प्रस्तुति को सफल बनाता है। इसके लिए विन्यासकर्ता को सभी प्रकार के तकनीक की
जानकारी होनी चाहिए जिसका वह अपने अनुभव और बुद्धि से रचनात्मक उपयोग कर सके।
4॰
मंच क्षेत्र एवं उपलब्ध सुविधाएं
यह संभव नहीं है कि
विन्यासकर्ता को हर जगह आदर्श मंच क्षेत्र और सारी सुविधाएं उपलब्ध हो क्योंकि
हमारे देश के बड़े शहरों में ही कुछ ही प्रेक्षागृह आदर्श और सुविधा सम्पन्न हैं, पर
नाटक छोटे शहरों में, स्कूल,
कॉलेज
एवं अस्थाई मंचों पर भी होता है और दृश्य विन्यासकर्ता को विन्यास करना होता है।
ऐसी स्थिति में विन्यासकर्ता को विन्यास से पहले जिन बातों का अवलोकन करना पड़ता है
वह हैं, मंच क्षेत्र और दर्शक
दीर्घा के बीच दृष्टि रेखा,
मंच की आकृति, लम्बवत और क्षैतिज पर्दों
के उपयोग की संभावना, मुख्य पर्दे का उठने
और गिरने का ढंग, प्रकाश सेतु की दूरी
और उसकी क्षमता, नेपत्थ और उसमें लगे उपकरण,
दृश्य इकाइयों को फ्लाई में ले जाने की व्यवस्था और उसके लिए आवश्यक बेटन की
स्थिति, सायक्लोरामा की स्थिति,
मंच
क्षेत्र पर कील और पेंच लगाए जाने की सुविधा, प्रकाश
संचालन का स्थान और अगर मंच गतिशील है तो उसके संचालन का स्थान,
स्थिति और तरीका।
उपरोक्त स्थितियों का
अवलोकन कर लेने के बाद किसी भी मंच पर प्रदत्त परिस्थितियों के अनुसार विन्यासकर्ता
सुगमता से विन्यास कर सकता है।
5॰
दृश्य विन्यास कार्यशाला एवं उपलब्ध उपकरण
दृश्य विन्यासकर्ता को
विन्यास की आधार योजना बनाने के पहले कार्यशाला
की स्थिति, उसकी क्षमता,
मंच के सापेक्ष उसकी दूरी, सीमाएं
और कार्यशाला में उपलब्ध उपकरण का आकलन कर लेना चाहिये क्योंकि ये सब भी कार्य की
जटिलता या सुगमता के निर्धारक होते हैं।
6॰
दृष्टि रेखाएँ
दर्शक दीर्घा से मंच
तक आनेवाली सभी दृष्टि रेखाओं से और प्रकाश की विभिन्न तीव्रता के सापेक्ष दृश्य
विन्यास स्पष्ट दिखाई पड़े इसके लिए विन्यासकर्ता को चाहिए की वह मंच के क्षैतिज
प्रभाग और लम्बवत प्रभाग को ध्यान में रखकर विन्यास का आकार-प्रकार निर्धारित करे।
7॰
शोध कार्य
भिन्न-भिन्न नाटकों
के देशकाल और परिवेश अलग-अलग होते हैं। विन्यासकर्ता को नाटक में वर्णित देशकाल और
परिवेश के अनुसार ही दृश्य सज्जा करनी होती है अन्यथा प्रस्तुति को हास्यास्पद
होते देर नहीं लगती है। विन्यासकर्ता को नाटक के देशकाल और परिवेश के स्थापत्य,
रहन-सहन और साज-सज्जा की गहरी जानकारी होनी चाहिए। सतही जानकारी से विश्वसनीय और
प्रभावशाली दृश्य सज्जा नहीं की जा सकती है। अतः विन्यासकर्ता को नाटक के देशकाल
और परिवेश पर शोध करना चाहिए तभी वह आदर्श,
विश्वसनीय और प्रभावशाली दृश्य विन्यास कर पाएगा। शोध के पश्चात किया गया दृश्य
विन्यास, विन्यासकर्ता को निश्चय ही
ख्याति प्रदान करता है।
8॰
रेखाचित्र एवं लघु आकारीय मॉडल
प्रस्तुति में
सम्मलित सभी लोगों को दृश्य सज्जा का स्पष्ट रूपाकार सूचित होना चाहिए ताकि वह कुछ
सुझाव देना चाहें तो दे सकें। इसके लिए विन्यासकर्ता कल्पित विन्यास का रेखाचित्र
या 3डी मॉडल तैयार करता है। यह कार्य विन्यासकर्ता के लिए भी उपयोगी होता है
क्योंकि विन्यास योजना की जो खामियाँ उसके मन की आँखों से छिपी होती है वह इससे
आसानी से पता चल जाती है जिसे वह समय रहते दूर कर लेता है। दृश्य विन्यास का
रेखाचित्र से ज्यादा प्रभावी उसका 3डी मॉडल होता है जिसे गत्तों,
थर्मोकोल, खपच्चियों आदि को गोंद से
चिपका कर तैयार किया जाता है।
9॰
विन्यास की योजना
कल्पित दृश्य सज्जा
का रेखाचित्र या मॉडल से विन्यास की आकृति-प्रकृति का पता तो चलता है लेकिन मंच पर
उसका वास्तविक आकार क्या होगा इसके लिए विन्यास की विस्तृत योजना तैयार करना
आवश्यक होता है क्योंकि मॉडल के आकार से विन्यास के वास्तविक आकार का पता लगाना
तकनीशियनों के लिए कठिन होता है। इसलिए विन्यासकर्ता दृश्य सज्जा के प्रत्येक भाग
का उचित नाप के साथ अलग-अलग चित्र बनाता है। ताकि तकनीशियन आसानी से अपना काम कर
सकें। दृश्य सज्जा के मोटे भागों के अतिरिक्त सूक्ष्म सज्जा,
जो रेखाचित्र में दिखाई भी नहीं पड़ते हैं,
विन्यासकर्ता को उनका वास्तविक चित्र बनाना पड़ता है। विन्यास योजना के बिना वैसा
ही विन्यास, जैसा विन्यासकर्ता चाहता है,
तैयार करना संभव नहीं हो सकता है।
10॰
सामाग्री का चयन
दृश्य सज्जा का अलंकरण
और उचित परिवेश दिखाने के लिए विभिन्न सामाग्री यथा पर्दे ,चादर,
फर्नीचर आदि का चयन करना पड़ता है। इसे हम मंच सामग्री भी कहते हैं। यह सामग्री
नाटक के देशकाल के अनुरूप और विन्यास में प्रयुक्त रंगो के अनुकूल होना चाहिए।
उचित अलंकरण और सामाग्री के अभाव में कुशलतापूर्वक किया गया दृश्य विन्यास भी
प्रभावित होता है। मंच सामाग्री के चयन या निर्माण में निर्देशक की राय लेना
आवश्यक होता है क्योंकि ये सामाग्री नाट्य क्रिया में प्रत्यक्षतः सहायक होती हैं।
11॰
दृश्य रंगन
दृश्य विन्यास में
रंगों का बहुत ज्यादा महत्व होता है। इसलिए विन्यासकर्ता को दृश्य सज्जा का रंगन
अपने देख-रेख में करवाना चाहिए क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि रंग करनेवाला
तकनीशियन अनुभवी हो। रंगन में हुई थोड़ी भी गलती साज- सज्जा को प्रभावहीन कर सकता
है। इसलिए इसमें अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत होती है।
12॰
तैयार दृश्य सज्जा का अलंकरण और अंतिम रूप प्रदान करना।
मंच पर पूरी दृश्य
सज्जा लगाने के बाद विन्यासकर्ता का अंतिम कार्य उसके अलंकरण और आवश्यक कमियों को
दूर करना होता है। अगर प्रारम्भिक कार्य सही से हुआ हो तो यह अंतिम कार्य मात्र
औपचारिक होता है। फिर भी सामग्रियों की सही स्थिति,
पर्दा खुलने से कोई व्यावधान आदि को देख-भाल लेना आवश्यक होता है।
यह आवश्यक नहीं है कि
दृश्य विन्यासकर्ता उपरोक्त सभी बातों का पालन करे ही। वह अपने अनुभव और प्रशिक्षण
के अनुसार कुछ बातों को छोड़ सकता है या उनका क्रम बदल सकता है। लेकिन एक नए
विन्यासकर्ता को चाहिए कि वह उपरोक्त सभी बातों का इसी क्रम में पालन करे। इससे वह
सुंदर और सटीक दृश्य विन्यास सरलता से कर पाने में सक्षम होगा।
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