अंग्रेजी के क्यूबिज्म (cubism) शब्द का
हिंदी पर्याय घनवाद है. एक आन्दोलन के रूप में घनवाद का जन्म दरअसल प्रभाववाद की
प्रतिक्रिया स्वरुप हुआ था. प्राख्यात कलाकार सेजां ने 15 अप्रैल 1904 को एक युवा
चित्रकार को चिठ्ठी में लिखा कि प्रकृति को बेलनाकार, गोलाकार और शंकु रूप में
देखना-समझना चाहिए. बाद में सेजां की प्रकृति में ज्यामितीय रूपाकारों की खोज की
सोच ने पिकासो और बराक जैसे कलाकारों के माध्यम से इस कला आन्दोलन को जन्म देने
में निर्णायक भूमिका निभाई.
घनवाद का मुख्य सरोकर रूपाकार की
प्रस्तुति थी – किसी चीज को जैसे हम देखते हैं वैसे उसे सामने नहीं रखा गया, उसकी
बनावट और स्पेस में उसका स्थान अधिक महत्वपूर्ण हो गया. यानि एक ही कैनवास या कागज
पर एक ही चीज के कई रूपों को प्रस्तुत किया गया. जाहिर है कि परिप्रेक्ष्य के
सिद्धांतों को अस्वीकृत किया गया. रंगों की तुलना में रूपाकारों पर अधिक बल दिया
गया.
कला समीक्षक लुई वाँसेल ने 1908 में बराक
की एक पेंटिंग की चर्चा करते समय ‘घन’(cube) शब्द का इस्तेमाल किया
जिसने घनवाद (cubism) नाम की नींव डाली. अंग्रेजी
कला इतिहासकार डगलस कूपर ने अपनी मौलिक पुस्तक द क्यूबिस्ट ईपक में क्युबिज़्म
के तीन चरणों का वर्णन किया है। कूपर के अनुसार "प्रारंभिक क्युबिज़्म" 1906
से
1908 तक था जब शुरूआत में पिकासो
और बराक के स्टूडियो में आंदोलन विकसित किया गया था. दूसरे चरण को "उच्च क्युबिज़्म"
कहा जाता है और 1909 से 1914
तक
माना जाता है, जिस दौरान जुआन ग्रिस महत्वपूर्ण प्रतिपादक के रूप में उभरे. आखिर
में कूपर ने "अंतिम क्युबिज़्म", 1914
से
1921 तक, को कट्टरपंथी नव-विचारक
कला आंदोलन यानि क्युबिज्म का आखिरी चरण कहा है.
पाब्लो पिकासो और बराक घनवाद के दो सबसे
बड़े कलाकार थे. दोनों ने कुछ समय तक घनवादी चित्र बनाये.1907 में पिकासो ने अपना
एतिहासिक चित्र बनाया- ‘आविन्यों की स्त्रियाँ. इस चित्र ने घनवाद को कला आन्दोलन
का रास्ता दिखाया. इस पेंटिंग में आदिम कला (खास तौर पर अफ्रीकी कला) से कई चीजें सीखी
गई थीं. विषय को सरल ज्यामितीय आकारों में बदल दिया गया था. बाद में अनेक घनवादी
कलाकारों ने नीग्रो कला से नई प्रेरणा प्राप्त करने की कोशिश की. घनवाद की
बुनियादी सोच यही थी कि कलाकारों को तीन आयामों में जो दिखे उसे एक सपाट सतह पर
पूरी तरह से कैसे दिखाया जाए.
अक्सर घनवाद और अमूर्त कला में घालमेल कर
दिया जाता है. यह समझा जाता है घनवादी चित्रकार अमूर्तन में दिलचस्पी लेता है और
विषय की उपेक्षा करता है. लेकिन स्तिथि इसके विपरीत है. घनवादी चित्रकार तो चीजों
को पेंट करना चाहते थे. पर एक कोण से नहीं.
घनवाद के प्रारम्भिक चरण, 1907 से 1912
में चीजों के रूपाकारों के विश्लेषण पर जोर दिया गया था. उसे विश्लेषणात्मक घनवाद
कहा जाता है. 1912 के आस पास पिकासो, बराक और जुआन ग्रीस ने कोलाज का इस्तेमाल
शुरू किया. अख़बारों से लेकर रेल के टिकटों के टुकड़े कोलाज का हिस्सा बने. इसे विश्लेषणात्मक
घनवाद का नाम दिया गया. यह प्रवृति 1915 तक प्रबल रही. विश्लेष्णात्मक घनवाद को भी
दो हिस्सों में देखा जा सकता है. 1907-09 में सेजां का प्रभाव प्रबल था और 1909-12
में विश्लेषणात्मक खोजों पर जोर दिया गया.
घनवाद के प्रारंभिक दौर में गिटार, शराब
का गिलास, बोतल, अख़बार, मेज जैसी चीजों को न जाने कितने कोणों से देखा गया और
एकवर्णी चित्रण को प्राथमिकता मिली. एक एकवर्णी योजना में अक्सर
नीले, भूरे और गेरू रंग
शामिल होते थे. बाद में कलाकारों को महसूस हुआ कि रूपाकार को सपाट करते चले जाने से चीजें
यथार्थ से दूर होती चली जा रही है. घनवाद बुनियादी रूप से एक यथार्थवादी कला
आन्दोलन था इसलिए चित्र जब यथार्थ से बहुत दूर होने लगे, तो उन्हें यथार्थ के
नजदीक लाने की कोशिश शुरू हुई. इसलिए धीरे धीरे वास्तविक सामग्री और वर्ण विविधता का उपयोग किया जाने लगा.
घनवादी कलाकारों का रास्ता बाद में भले
ही अलग हो गया पर इस कला आन्दोलन ने उन्हें पेंटिंग की एक ऐसी समझ दी जो दूसरे
चित्रों के जन्म के लिए जरुरी थी. पिकासो ने बाद में न जाने कितने चित्रों में इस समझ
का सार्थक इस्तेमाल किया.
शुरू में घनवादी चित्रों को लोग पसंद
नहीं करते थे. कला समीक्षक मजाक उड़ाते थे. घनवाद के प्रारंभिक चरण में किसी ने
पिकासो से पूछा कि अगर आप बारसेलोना (स्पेन) स्टेशन पर उतरें और आप के माता-पिता
आपको घनवादी पेंटिंग सरीखे चेहरों के साथ घिरा देखें, तो वे क्या सोचेंगे ? इस पर
एक कला समीक्षक ने कहा पिकासो से यह सवाल किया जाना चाहिए कि वे अपनी पेंटिंग की
किसी स्त्री का साथ चाहेंगे या वीनस का ? ऐसे तमाम व्यंग-विरोधों के वावजूद बहुत जल्दी ही पश्चिम का वातावरण घनवादी हो
गया. ऐसा व्यापक असर पड़ा कि आधुनिक डिजाईन, स्थापत्य और नगर योजनाएँ – सभी कुछ
घनवादी क्रांति से प्रेरित होने लगा.
घनवाद ने 6-7 सालों में ही पेंटिंग की
धारणा में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया. रेनेसाँ के बाद से पेंटिंग की जो धारणा
बन गई थी वह घनवादियों द्वारा तोड़ दी गई. प्रकृति के दर्पण के रूप में कला की
धारणा पुरानी पड़ गई. कलाकार का बड़ा और जीनियस होने की मान्यता उसकी घनवादी छवि तय
करने लगी. बराक और पिकासो भी अपने घनवादी दौर को कभी पार नहीं कर पाए. उनकी
उत्कृष्टता भी घनवाद से सम्बंधित रही और उनका बाद का बहुत-सा काम घनवादी दौर की तुलना
में घटिया माना गया.
फ्रांसीसी कवि वालेरी की शिकायत थी कि
घनवाद के पहले दशक में एक पेंटर का काम दूसरे पेंटर से अलग करना मुश्किल था. इस पर
समीक्षक वोल्फगांग पालेन ने कहा है, “इससे यह साबित होता है कि घनवाद ने एक
सामूहिक रास्ता अपना लिया था. एक महान अज्ञात व्यक्तित्व बन गया था. पेंटिंग,
संगीत की बहन ज्यामिति की दुनिया में चली गई थी”.
घनवाद में चित्रकला का सबंध सिर्फ
ज्यामिति से ही नहीं बल्कि कविता से भी रहा. घनवाद की मौलिकता का गहरा संबंध उस
दौर की अवाँ गार्द कविता से था. पिकासो ने खुद स्वीकार किया है - “वह एक ऐसा वक्ता
था जब कवियों और चित्रकारों ने एक-दूसरे को प्रभावित किया”. तत्कालीन प्रतिभाशाली
फ़्रांसिसी कवि एपोलीनियर ने घनवादियों की पहली प्रदर्शनी के कैटलॉग में प्रभाववाद
पर हमला करते हुए लिखा – “अब एक ऐसी काल के लिए जगह है जो अधिक परिष्कृत, अधिक
संयोजित, अधिक प्रभावशाली है”. दरअसल एपोलिनिएर की प्रतिभा, उनकी बौद्धिक
क्षमताओं, रचनात्मक उर्जा ने घनवाद का ऐतिहासिक साथ दिया. कवि पियारे रेवेर्दी ने
कहा कि दर्शन के क्षेत्र में देकार्ते ने जो किया वही पिकासो ने अनजाने में
पेन्टिंग में किया.
पिकासो, बराक और ग्रीस के बाद घनवाद को
नए अर्थ और सन्दर्भ देनेवाले चार कलाकार थे - देलोने, लेझे, पिकाविया और मार्सेल
दुसाँ. इन चारों ने घनवाद को नए अर्थ और सन्दर्भ दिए. इन कलाकारों ने घनवाद से
अपना कार्य शुरू करके, घनवाद और भविष्यवाद[1] के रास्ते
और भाषा में काफी भिन्नता के वावजूद, अपनी कला में भविष्यवाद के लक्षणों को प्रश्रय
दिया. लेझे ने भविष्यवादियों की तरह अपनी कला में मशीनी पुर्जों का स्वागत किया.
इसलिए उनकी कृतियों के सन्दर्भ में ‘ट्यूबवाद’ और ‘सिलिंडरवाद’ जैसे नामों का
उपयोग किया जाने लगा. 1917 में बनाई गई उनकी पेंटिंग ‘ताश का खेल’ घनवादी भाषा से
प्रारम्भ होकर उससे परे चली जाती है. इस तरह चित्रकला घनवाद से दूसरी ओर मुड़ने
लगी.
वर्तमान
समय में घनवाद या क्यूबिज्म एक कला आंदोलन से बहुत दूर कला के इतिहास के पूर्व
वृतान्तों तक सीमित रहकर भी अनेक समकालीन कलाकारों को अपनी परंपरा और काम की
बारीकियों की जानकारी देकर प्रेरित करती है. इसलिए घनवादी चित्रकारी का केवल
नियमित वाणिज्यिक उपयोग ही नहीं होता है बल्कि समकालीन कलाकारों की उल्लेखनीय
संख्या, आज भी शैलीगत ढंग से और सैद्धांतिक रूप से भी चित्र बनाती है. एक प्रतिनिधी
सम्प्रदाय के रूप में घनवाद, चित्रकला में फोटोग्राफी के लगातार बढ़ते महत्व और
उसकी जकड़ में आने वाले कलाकारों को प्रेरित करके चित्रकला को फोटोग्राफी से आगे ले
जाने में पूरी तरह से मदद करता है. पर कुछ प्रश्न जो 20 वीं
सदी के आरम्भ में घनवाद के प्रतिनिधी कलाकारों के समक्ष उठे थे वे आज भी अनुत्तरित
ही हैं. उन प्रश्नों में सौंदर्य संबंधी प्रश्न भी हैं.
[1] इतालवी
लेखक मरिनेती ने 1909 में काव्यात्मक, कलात्मक और राजनितिक आन्दोलन – ‘भविष्यवाद’
नाम से शुरू किया था. भविष्यवाद ने आदमी और मशीन के सम्बन्ध को जांचने कि भी कोशिश
की.
Very nice information
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