शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

पश्चिमी चित्रकला का संक्षिप्त इतिहास



कला मानव मन की ऐसी रचनात्मक अभिव्यक्ति है जिसके माध्यम से वास्तविक और काल्पनिक स्थितियों को चित्रित किया जाता है. उसकी सुदंरता को कैनवास, पेपर, पत्थर और दीवारों पर उकेरा जाता है. आमतौर पर जब हम कला की बात करते हैं तब उसका अभिप्राय, वास्तुकला, मूर्तिकला और चित्रकला से होता है. कला विश्व की ऐसी कलात्मक और अनूठी पहचान है जिससे किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है. कला की कलात्मकता इससे परलक्षित होती है कि कलाकार और हस्तशिल्पी अपनी रचनात्मक अंगुलियों से वही दिखाता है जो वास्तव में सच होता है. कला को वास्तविक और मूर्त रूप कलाकारों की कल्पना ने दिया. जिन्होंने इसको दुनिया के कोने-कोने में पहुंचा दिया. आधुनिक कला को हम मनुष्य की कलापूर्ण प्रवृत्ति का साक्षात् प्रमाण मानते है. जिसकी सुंदरता दुनिया के विभिन्न चित्रकारों ने अपनी कला से प्रकट की है. प्रकृति और कला का नाता बहुत ही प्राचीन है. इनका अस्तित्व ही मनुष्य को जीवंत बनाए हुए है. कला की उत्पत्ति के चिन्ह हमें गुफाओं और शिलाखण्डों पर उकरी गई विशेष आकृति में देखने को मिलते हैं. इसलिए चित्रकला को ही सबसे प्राचीन कला मानना तर्क संगत लगता है.
विश्व के विभिन्न भागों में गुफाओं आदि से प्राप्त चित्रित आकृतिओं का तार्किक और वैज्ञानिक विश्लेषण करने के बाद भी चित्रकला की उत्पत्ति कब हुई, इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है, निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है क्योंकि अब तक मिले साक्ष्य अंतिम साक्ष्य नहीं हैं. वर्तमान समय में यह माना जाता है कि 27000-13000 ई.पू. में दक्षिण-पश्चिम यूरोप में गुफा कला के द्वारा तत्कालीन मानव ने अपने जीवन का चित्रण किया और वहीं से पश्चिमी कला की शुरुआत. भारत की तरह पश्चिम में चित्रकला की उत्पत्ति का कोई दैवी सिद्धांत (भारत में राजा नग्नजित का प्रसंग) मान्य नहीं हैं. वहां चित्रकला की उत्पत्ति का विकासवादी सिद्धांत ही मान्य है. प्रागैतिहासिक काल के बाद पश्चिम में चित्रकला की ठोस जानकारी प्राचीन गौरवशाली ग्रीक युग से मिलती है. ग्रीक चित्रकला बहुत उत्कृष्ट थी जिससे रोमन प्रभावित हुए. इसी तरह क्रमिक युगों में अपनी पूर्ववर्ती कला, स्थितिओं, विचारधाराओं या वादों से प्रभावित होकर पश्चिमी चित्रकला आगे बढ़ी जिसका क्रमबद्ध वर्णन निम्नप्रकार है.
प्राचीन रोमन व ग्रीक चित्रकला :
प्राचीन ग्रीक संस्कृति ज्ञान-विज्ञान-राजनीति और नाट्यकला की तरह ही  दृश्य कला (visual art) यानि चित्रकला और मूर्तिकला के क्षेत्र में भी अपने आसाधारण योगदान के लिए विख्यात है. प्राचीन ग्रीक चित्रकारी मुख्यतया अलंकृत पात्रों के रूप में मिली है. ‘प्लिनी द एल्डर’ के अनुसार इन पात्रों की चित्रकारी इतनी यथार्थ थी कि पक्षी उन पर चित्रित अंगूरों को सही समझ कर खाने की कोशिश करते थे. कला के क्षेत्र में रोमन सभ्यता ग्रीक सभ्यता से प्रभावित थी इसलिए रोमन चित्रकारी काफी हद तक ग्रीक चित्रकारी से प्रभावित हुई. सही अर्थों में कहा जाए तो रोमन चित्रकारी की कोई अपनी विशेषता नहीं है. युद्धप्रिय रोमन जाति को कला की सभी बारीकियां ग्रीकों से ही मिली. रोमन भित्ति चित्र आज भी दक्षिणी इटली में देखे जा सकते हैं.
मध्यकालीन शैली :
मध्यकाल में लगभग दसवीं शताब्दी तक प्रदर्शन कलाओं के लिए अन्धकार युग माना जाता है क्योंकि चर्च ने उसे प्रतिबन्ध कर दिया था लेकिन चित्रकला फली-फूली पर उसका कार्यक्षेत्र धर्म और चर्च ही रहा. कला में 330-1453 ई. के कालखंड को बाइजेंटाइन काल कहा जाता है इस दौरान बाइजेंटाइन कला ने रुढि़वादी ईसाई मूल्यों को व्यवहारिक या लौकिक पच्चीकारी या प्रतिमाओं के रूप में व्यक्त किया. बाइजेंटाइन कला की तुलना वर्तमान काल की अमूर्त कला से की जा सकती है. मध्यकाल के दौरान रोमांनेस्क्यू और गोथिक चर्चों को स्थापत्य और भित्ति चित्रों से अलंकृत किया गया. तत्कालीन भित्ति चित्रों में एक विशेष अपील दिखाई पड़ती है. बाइजेंटाइन स्थापत्य व वास्तुकला के प्रभाव से रोमांनेस्क्यू कला में पैनल चित्रकारी एक सामान्य चीज हो गई और उसका बहुत योगदान रहा. 13वीं शताब्दी के मध्य तक आते-आते मध्यकालीन कला व गोथिक चित्रकारी यथार्थवादी हो गई. यथार्थवादी कला का सबसे ज्यादा प्रभाव इटली पर पड़ा. इस काल के चर्चों में अधिक खिड़कियां बनाई जाने लगीं और अलंकरण के लिए रंगीन स्टेन शीशों का प्रयोग किया जाने लगा. नोत्रे देम द पेरिस का चर्च इस शैली की प्रतिनिधि इमारत है.
नवजागरणकाल और सदाचारवाद :
नवजागरणकाल में आकर कलाओं पर जो धार्मिक नियंत्रण या प्रतिबन्ध था वह ख़त्म हुआ और मध्यकाल में उपेक्षित कला को उत्कृष्ट बनाने के लिए कलाकारों ने प्राचीन यूनानी और रोमन कलाओं की विशेषताओं का आश्रय लिया. इसी क्रम में डोनाटेल्ले, लिप्पी और बोटसेल्ली ने ग्रीक और रोमन स्थापत्यकला, साहित्य और चित्रकारी में लोगों की रुचि जगाई. फ्लोरेंस नवजागरण का केंद्रबिंदु था. इस काल के कलाकारों ने चित्रकारी के लिए तैलीय रंगों का आविष्कार किया. लियोनार्डो द विन्सी, माइकेलएंजिलो, राफेल, जिओवन्नी बेल्लिनी और टिटियन जैसे महान कलाकारों ने चित्रकारी को एक नया आयाम व ऊँचाई प्रदान की. इस काल की चित्रकारी में मानव शरीर को एक अलग अंदाज में चित्रित किया गया. हैंस हॉलबीन द यंगर, अल्ब्रेख्त ड्यूरर, लुकाच क्रेनाच, मैथियास ग्रेुनेवाल्ड औ्रर पीटर ब्रुगेल जैसे फ्लेमिश, डच और जर्मन चित्रकारों ने इतालवी चित्रकारों की अपेक्षा अधिक यथार्थवादी शैली का विकास किया.
उच्चनवजागरणकाल की शैली से एक कलात्मक शैली सदाचारवाद का विकास हुआ. रोमानो, पोंटार्मो और पर्मीजिआनिनो जैसे कालकारों ने नवजागरण काल की खोजों को अरूढ़ शैली में व्यक्त किया.
शास्त्रीयवाद :
नवजागरण काल के बाद, 17वीं शताब्दी की चित्रकारी में शास्त्रीयवाद मुख्य शैली थी जिसका मुख्य प्रभाव कैथोलिक देशों -  इटली व फ्रांस पर विशेष रूप से पड़ा. लॉरेन और पाऊस्सिन जैसे कलाकारों ने उत्तर सदाचारवादियों की शुष्कता के खिलाफ विद्रोह करते हुए उच्च नवजागरण काल के प्रकृतिवाद की ओर अपना रुख किया.
डच स्कूल :
नीदरलैंड में 17वीं शताब्दी के दौरान डच चित्रकारी का जन्म हुआ. वनहिक, हल्सन और रेम्ब्रां जैसे चित्रकारों ने शांत जीवन एवं प्रतिदिन के प्रसंगों का चित्रण किया. सादगी और सामान्य प्रसंगों का चित्रण ही इस शैली कि विशेषता है. 
नव्य-शास्त्रीयवाद :
18वीं शताब्दी में इटली और ग्रीक की प्राचीन सभ्यताओं के उत्खनन के बाद नव्य-शास्त्रीयवाद का उदय हुआ. नव्य-शास्त्रीयवादी चित्रकारों ने मुख्य रूप से रूमानियत और उदात्तता पर ध्यान दिया. डेविड और इन्ग्रेस इस शैली के प्रतिनिधि कलाकार थे.
रोमांसवाद :
कला में रोमांसवाद का उदय 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ और इसका प्रभाव 19वीं शताब्दी के मध्य तक रहा. फ्रांसिस्को डि गोया, जॉन कांस्टेबल और जे. एम. डब्ल्यू. टर्नर जैसे चित्रकारों ने ने रोमांसवाद का प्रतिनिधित्व किया. रोमांटिक चित्रकारों ने लैंडस्केप चित्रकारी को एक शैली का रूप दिया. मुख्य रूप से इस वाद के कलाकारों ने शास्त्रीयवाद और नव्य-शास्त्रीयवाद के सौंदर्यात्मक और नीतिवादी मूल्यों के खिलाफ विद्रोह करते हुए चित्रों में रूमानी भावनाओं की अभिव्यक्ति की.
यथार्थवाद :
यथार्थवाद का जन्म फ्रांस में हुआ और जल्दी ही पूरे यूरोप और अमेरिका में इसका प्रसार हो गया. कॉउरबेट और मिलेट ने रोमांसवाद की आत्मनिष्ठता एवं व्यक्तिवादिता के खिलाफ विद्रोह करते हुए प्रकृतिवादी शैली अपनाते हुए प्राकृतिक दृश्यों और सामान्य जीवन के चित्र उकेरे. चित्रकला में  में प्रकृतिवादी शैली ही यथार्थवादी शैली मानी जाती है. इस शैली का उत्कर्षकाल 1840-1880 ई. तक मानी जाती है.
प्रभाववाद :
19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में फ़्रांस के कुछ कलाकारों ने चित्रकला में नए ढंग के प्रयोग किया जिसे प्रभाववाद नाम दिया गया. वे चित्रकार पुरनी रूढ़ियों को तोड़ते हुए खुले में जाकर चित्रकारी करने लगे. नई तकनीक के प्रयोगों के साथ चित्रों में मद्धिम प्रकाश के प्रभाव पर ध्यान दिया गया और पारदर्शी रंगों के प्रयोग की उपेक्षा की गई. रेनॉयर और देगास ने अपनी प्रथम प्रभाववादी प्रदर्शनी का 1874 में पेरिस में आयोजन किया. इनके विषयों में लैंडस्केप और शहरी जीवन का चित्रण करना शामिल था. सिउरेट ने प्रभाववादियों के कार्य को आगे बढ़ाते हुए रंग के बिंदुओं वाली बिंदुचित्रकारी का विकास किया.
संकेतवाद :
संकेतवाद शैली का उदय 1880 के दशक में चित्रकारी में प्रकृतिवादी प्रवृत्तियों, भौतिकवादी मूल्यों और औद्योगिक क्रांति के प्रभावों खिलाफ हुआ. मोरियू और रेडॉन जैसे संकेतवादी चित्रकारों ने प्रभाववाद की प्राकृतिक बिम्बसृष्टि को खारिज करते हुए फंतासी और स्वप्नों की दुनिया में शरण ली.
आधुनिक काल :
1888 ई. से आधुनिक काल की शुरुआत मानी जाती है. 1844ई. में वान गाग, तुलोज लात्रोक, बोन्नार रूसो जैसे नए कलाकारों की प्रदर्शनियों से उत्तरप्रभावाद की शुरुआत होने के कारण इसे आधुनिककाल का प्रथम कला आन्दोलन समझा जाता है. लगभग सौ साल से अधिक के सफ़र में पश्चिमी चित्रकला का आधुनिक काल प्रभाववाद के अतिरिक्त जिन कला आन्दोलनों का साक्षी बना वे हैं : अभिव्यंजनावाद, घनवाद, अमूर्त कला, दादवाद, अतियथार्थवाद, एक्सन पेंटिंग, पॉप कला, आकृतिमूलक कला,ऑप और काइनेटिक कला, फोटो यथार्थवाद, ग्रेफिटी कला आदि.
औद्योगिक क्रांति, साम्राज्यवाद, व्यापार आदि कारणों से यूरोप और अमेरिका का संपर्क विश्व के अन्य देशों से हुआ। फलतः, संस्कृति का आदान-प्रदान हुआ. इस कारण से पश्चिमी चित्रकला पर अफ्रीकी कला, इस्लामिक कला, भारतीय कला, चीनी कला और जापानी कला का बहुत प्रभाव पड़ा है और इन देशों की कलाएँ भी उससे प्रभावित हुई हैं.

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